जीवन का सच्चा सौंदर्य — देने की कला.
“सच्चा धन है कृतज्ञता, सच्चा जीवन है वर्तमान में रहना।”
जब जीवन की दौड़ में ठहरते हैं,
तो एक गहरी सच्चाई सामने आती है
हम यहाँ लेने के लिए नहीं, देने के लिए भेजे गए हैं।
भ्रम में वर्षों तक हम केवल लेते रहते हैं,
स्नेह, अवसर, समय, भावनाएँ…
और जब आत्मा जागती है,
तो महसूस होता है l
खाली हाथ ही आए थे, खाली हाथ ही लौटेंगे,
बीच का सफ़र सिर्फ दान और आभार का है।
आयुर्वेद कहता है
“संतुलन ही स्वास्थ्य है।”
जो ज़मीन से, भोजन से, दिनचर्या से जुड़ा है,
वही तन-मन में स्थिर रहता है।
ध्यान कहता है l
“यह क्षण ही सब कुछ है।”
वर्तमान में जीना ही अमृत है।
ना कल का बोझ, ना कल की चिंता,
बस इस पल की सम्पूर्णता को स्वीकार करना ही मुक्ति है।
जो देता है, वही वास्तव में समृद्ध है।
जो आभारी है, वही सच्चा धनी है।
जो क्षण को अपनाता है, वही चिर-आनंद का रसास्वादन करता है।
देना ही अस्तित्व की धड़कन है,
जैसे पेड़ अपनी छाँव देता है,
जैसे नदियाँ अपना जल लुटाती हैं,
वैसे ही जीवन मांगता है,
हमारा हृदय खुला, निर्मल, आभारी।
कृतज्ञता है पहला दीपक,
जो भीतर जलता है और अंधकार मिटाता है।
और जब वर्तमान को पूरे मन से अपनाते हैं,
तो सुख, शांति, समृद्धि
स्वतः आकर हमारे द्वार पर बैठ जाते हैं।
स्वास्थ्य को प्रतिदिन साधो,
धन को कर्मों से गढ़ो,
और आभारी मन से मुस्कुराओ
यही है आनंदमयी आयुर्वेदिक जीवन।
“तुम यहाँ लेने नहीं, देने के लिए हो।
और देने का सबसे सरल मार्ग है
स्वस्थ रहना, आभारी रहना, और पल को पूर्ण जीना।”
“हर सुबह एक नया जन्म है।”
1. शांत बैठें
एक आरामदायक आसन चुनें।
रीढ़ सीधी, आँखें धीरे से बंद।
दोनों हाथ घुटनों पर या हृदय पर रखें।
2. श्वास पर ध्यान दें l
गहरी साँस भीतर लें...
थोड़ी देर रुकें...
धीरे-धीरे साँस बाहर छोड़ें।
5 बार दोहराएँ।
(कल्पना करें कि बाहर जाते हुए तनाव भी निकल रहा है।)
3. कृतज्ञता का भाव जगाएँ l
मन ही मन कहें:
“मैं जीवन के लिए आभारी हूँ।
मैं इस नए दिन के लिए आभारी हूँ।
मैं अपने भीतर की शक्ति के लिए आभारी हूँ।”
4. वर्तमान को स्वीकारें l
विचार आएँ तो उन्हें आकाश में बादलों की तरह गुजरने दें।
ध्यान रखें: यही क्षण अनमोल है।
मन को एक वाक्य के साथ स्थिर करें l
“यह क्षण पर्याप्त है, मैं पूर्ण हूँ।”
5. संकल्प लें l
दिल से संकल्प करें l
“आज मैं स्वस्थ रहूँगा।
आज मैं प्रेम बाँटूँगा।
आज मैं आनंद चुनूँगा।”
6. धीरे-धीरे लौटें l
हथेलियाँ रगड़ें, गर्माहट को आँखों पर रखें।
मुस्कुराकर आँखें खोलें।
दिन की शुरुआत शांत ऊर्जा से होगी।
मन में संतुलन और कृतज्ञता का भाव रहेगा।
यह छोटा-सा अभ्यास, जीवन को आयुर्वेदिक संतुलन और आध्यात्मिक गहराई, दोनों से जोड़ देगा।
“सच्चा ध्यान किताबों में नहीं,
बल्कि साँस और आभार में छिपा है।”
ध्यान को और गहराई देने के लिए ध्वनि (मंत्र) बहुत सहायक होती है।
मंत्र कंपन (vibration) और ध्वनि के माध्यम से मन को स्थिर करते हैं और शरीर-मन की ऊर्जा को संतुलित कर देते हैं।
5 मिनट का मंत्र-जप ध्यान l
“ध्वनि है हीलिंग, कंपन है साधना।”
सरल मंत्र
1. ॐ (OM)
यह सबसे प्राचीन और सार्वभौमिक मंत्र है।
"ओऽऽ…म्…" ध्वनि को लम्बा खींचें।
तीन भागों में उच्चारित करें:
“ओ” = उदय और प्रसार
“म्” = एकता और शांति
अंत की मौनता = परम ध्यान
2. सोऽऽहम् (SO-HAM)
श्वास के साथ जुड़ता है।
श्वास भीतर लेते समय मन ही मन कहें “सोऽऽ…”
श्वास छोड़ते समय कहें “…हम्”
इसका अर्थ है: “मैं वही हूँ (परमात्मा से एक हूँ)।”
3. शांति मंत्र (शांति-पाठ के रूप में छोटा अंश)
“ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः”
तीन बार दोहराएँ।
इसका भाव: शरीर में शांति, मन में शांति, वातावरण में शांति।
अभ्यास विधि (5 मिनट)
1. आरामदायक आसन में बैठें।
2. आँखें बंद करें और गहरी साँस लें।
3. चुना हुआ मंत्र मन ही मन या धीमी आवाज़ में दोहराएँ।
4. मंत्र का कंपन अपने पूरे शरीर में अनुभव करें।
5. यदि ध्यान भटक जाए, तो कोमलता से वापस मंत्र पर लौट आएँ।
6. पाँच मिनट के बाद संकल्प लें:
“यह शांति पूरे दिन मेरे साथ रहे।”
ॐ जप से भीतर गहरी स्थिरता और ऊर्जा जागती है।
सोऽहम् से आत्म-जागरण और श्वास का समन्वय होता है।
शांति मंत्र से तनाव मिटकर मन शांत होता है।
“सच्चा मंत्र वही है जो आपको भीतर की मौनता में पहुँचा दे।”
“सुबह का एक क्षण, पूरे दिन का जीवन बदल सकता है।”
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